रात 9 बजे के बाद दिल्ली के इस जंगल में जाना मतलब मौत को दावत देना
मार्च के महीने में जब दिल्ली का मौसम खिला-खिला सा रहता. Sunday के दिन निकल पड़ा अपने दोस्तों के साथ थोड़ा बाहर घूमने दोस्तों के साथ वैसे भी मौके बहुत कम मिलते है जब इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में उनसे मिलना होता है दो bike पर चार लोग थे हम Vasant Kunj की side निकल जाते है.
पहले हमें कुछ छोटे-छोटे घर और झुग्गियां दिखाई देती थी. अब वहां बोर्ड लगे हुए थे. दिल्ली मेट्रो के. शायद दिल्ली मेट्रो की नई लाइन शुरू होने का काम बड़ी तेजी से हो रहा था. इससे पहले हम जितनी बार भी वहां से गुजरे थे. उस जगह को देख के कुछ ज्यादा खास लगा नहीं वो एक जंगल खासा area है जहाँ आसपास बस पेड़ ही पेड़ है ये जगह main road से थोड़ी अंदर जाके पड़ती है हमने अपनी bike वहाँ की तरफ मोड़ ली सुबह सुबह का. था वहाँ जा के देखा तो कुछ लोग वहाँ काम कर रहे थे बड़ी बड़ी मशीनें चल रही थी और आसपास कुछ सामान बिखरा पड़ा था.
एक दोस्त जो दूसरी bike चला रहा था उसने कहा कि चल यार चलते है एक Gurgaon का चक्कर लगा के आते है. और हम तभी निकल गए डेढ़ दो घंटे bike चलाने के बाद हम वापस घर आए और मेरे दिमाग में अभी भी वही बात चल रही थी metro construction site वाली बात उसी जगह को लेके lunch करने के बाद थोड़ी देर में सो गया एक Sunday का दिन ही तो. जब थोड़ा आराम मिल पाता है.
शाम को उठा और मेरा मन हुआ कि कुछ लेके आता हूँ यार shopping करने चला गया मैं तैयार हो के निकला Mahipalpur की तरफ वहाँ कुछ factory outlets होते है तो अच्छे rate लग जाते है वहाँ पे मतलब bargaining अच्छी हो जाती है sh. करते-करते मुझे टाइम का पता ही नहीं चला. रात के नौ कब बज चुके थे.
मैंने कुछ कपड़े लिए, कुछ खाने का सामान था मेरे पास. बाहर पार्किंग में आया और मैं अब अपनी बाइक पे था. और उसी रास्ते से आ रहा था जहाँ हमने वो मेट्रो का काम होते हुए देखा था. जब मैं उस जगह के सामने से निकल रहा था तब मैंने अपनी bike वहीं एक bus stand के पास रोक दी और मैं देख रहा था कि इस वक्त वहाँ अंदर क्या हो रहा होगा इतनी सुनसान जगह पर लोग कैसे काम कर लेते हैं रात के वक्त.
मैंने अपनी. स्टार्ट की और आगे से यू-टर्न ले के उस वाली साइड आ गया जहाँ से वहाँ अंदर जाने का रास्ता था. बाहर मेन रोड पर तो अच्छी खासी रोशनी थी. गाड़ियों का शोर था. लोगों की चहल-पहल भी थी. लेकिन अंदर उतना ही सन्नाटा और अँधेरा पसरा पड़ा था.
मुझे मालूम नहीं उस वक्त मुझे क्या हुआ मैंने अपनी bike start की और उस रास्ते पर अंदर की तरफ मोड़ ली जैसे जैसे मैं अंदर जा रहा था वैसे वैसे अँधेरा और सन्नाटा बहुत गहरा होता जा रहा था दिन में जितना. था यहाँ काम का अब उतना ही शांत ये इलाका लग रहा था मैं करीब दो सौ meter अंदर आ चूका था और मुझसे कुछ ही दूरी पर वो दिल्ली metro के board लगे हुए थे आपने भी देखा होगा जब कहीं metro का काम होता है तो वो लोग लगा देते है ताकि public को पता रहे.
मैं देख रहा था उस जगह को कोई मशीन नहीं चल रही थी इस वक्त बाहर कोई लोग भी नजर नहीं आ रहे थे. मैंने बाइक को स्टैंड पर लगाया और बिना हेलमेट उतारे उस जगह को देखने लगा. मेरे पास एक शॉपिंग बैग भी था. जो बाइक पर टाँगा हुआ था. मेरी helmet के ऊपर कभी कुछ आवाज़ आती है जैसे कुछ गिरा हो शायद पेड़ पर से टूट के कुछ गिरा हो मैंने helmet उतारा और देखने लगा कि क्या बात है रात के सन्नाटे को चीरती हुई कुछ कीड़े मकोड़ों की आवाज़ आ रही थी.
मैंने bike की चाबी निकाली और आगे जाने लगा जहाँ metro के board लगे थे वहाँ अंदर कुछ लोग बैठे थे उन्होंने एक bulb लगाया हुआ था और शायद रात के खाने के लिए कुछ बना रहे थे वो मैं उन्हें पार करता हुआ थोड़ा और आगे बढ़ा. और सामने जंगल ही जंगल था बस कोई आवाज़ कोई रोशनी नहीं बस अँधेरा ही अँधेरा.
अब तक मैं बाहर main road से कम से कम तीन सौ साढ़े तीन सौ meter अंदर आ चूका था और मेरी bike काफी पीछे खड़ी थी metro का काम जहाँ चल रहा था. वो जगह भी मुझसे पीछे रह गयी थी अब मैं जिस जगह खड़ा था मुझसे थोड़ी दूरी पर बहुत हल्की सी रौशनी मुझे नजर आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने zero watt का bulb जलाया हुआ हो वहाँ से मुझे आवाज आती है.
मैं वो आवाज सुन के एकदम चौकन्ना हो जाता हूँ कि कौन है? फिर से आवाज आती है। तो मेट्रो वाले सरकारी बाबू उसके दो बार पूछने के बाद भी मैंने कोई जवाब नहीं दिया। और धीरे-धीरे फिर पीछे हटने लगा। वापस. के लिए अपने कदम पीछे ले रहा था और फिर गूंजती हुई एक रोने की आवाज आयी और वो आवाज वहीं से आ रही थी जहाँ वो हलकी हलकी सी रौशनी दिख रही थी.
वापस कदम बढ़ाते हुए मेरा phone बज उठा मेरा phone ring पे था और उसकी आवाज वहाँ रात. सन्नाटे में काफी तेज़ सुनाई पड़ रही थी इतने में वो रोने की आवाज़ भी आनी बंद हो गयी और तभी मेरे पीछे से किसी ने कहा तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया.
मैंने मुड़ के देखा तो एक आदमी कंबल सा ओढ़े हुए बैठा था उसके हाथ में. नुकीली सी चीज चमक रही थी वो देख मैं पूरी तरह से थाम गया मेरी टाँगे काँपने लगी मेरी मेरी आवाज़ तक नहीं निकल पायी उसने चिल्लाते हुए कहा तुम यहाँ क्या करने आए हो और ये कह के मेरी तरफ एक पत्थर फेंक दिया और फिर ज़ोर से रोने लगा.
मैं वहाँ से भागना चाहता था पर पता नहीं मुझसे अब हिला भी नहीं जा रहा था मुझसे चला भी नहीं जा रहा था मेरा phone अभी भी बज रहा था और वहाँ उसके रोने की आवाज और मेरे phone की आवाज गूँज रही थी तभी एक आवाज आयी. और ये कहते ही एक पत्थर मेरे माथे पे दे मारा जिसके बाद मेरी चीख निकली.
मैं बुरी तरह से डर चूका था मुझे पसीने आ रहे थे मैं मैं घबरा चूका था मैं गिरता-पड़ता भागने लगा और मेरे माथे से खून बह रहा था अब तक मेरी आवाज सुन के वो मजदूर रोक. खाना खा रहे थे वो भी अपने साथ, सरिया, rod ward ले के आ गए। छह-सात लोग थे जिनके हाथ में टॉर्च थे। वो चिल्लाते हुए आ रहे थे।
ये जगह ऐसी थी जहाँ से आपकी आवाज बाहर main road तक जा ही नहीं सकती थी मेरी आँखें बंद सी होने लगी थी और मैं. पा रहा था कि कुछ लोग आ रहे हैं इस तरफ और जहाँ वो आदमी बैठा था मैंने वहाँ देखा तो कोई घबराते हुए बड़ी तेज़ी में मेरी तरफ आया उसने अपना मुँह खोला हुआ था जैसे ही मुझे खा जाएगा अभी उसके मुँह से पानी टपक रहा था सामने से आते हुए लोगों ने पत्थर फेंके और वो. सा दिखने वाला जानवर वहाँ से भाग गया हो उसकी आवाज वहाँ जंगल में गूंज रही थी.
मेरे माथे से खून भी ज्यादा बह चूका था उन्होंने मुझे उठाया और पास के अस्पताल में दिखाया जहाँ doctor ने मेरी पट्टी वगैरह की और फिर मेरे घरवालों को phone करके मेरे बारे में बताया. थोड़ी देर में मेरे घर वाले आए और उन्हें वहाँ के मजदूरों ने जितना देखा था जितना समझा था वो सब मेरे घरवालों को बताया मेरे सिर पे चौदह टांके लगे थे मुझसे कुछ बोला तक नहीं जा रहा था ना मेरी ऐसी हालत थी.
धीरे धीरे जब हफ्ते भर बाद. कुछ recover हुआ तब घरवालों ने मुझे बिठाया और कहा कि तू वहाँ करने क्या गया था रात को पता है वो लोग नहीं आते तो वो आदमी तुझे मार डालता और जंगल में कितने नशेड़ी घूमते है चोर उचक्के होते है क्यों गया था तू वहाँ पे.
मैंने कहा मैं तो बस. करने गया था रास्ते में आते हुए मुझे वो जगह अंदर की तरफ बुलाने लगी मैं ना चाहते हुए भी वहाँ अंदर जाने लगा तब मुझे अंदर वो आदमी दिखा उसके अलावा वहाँ कोई भी नहीं था उसने मुझे एक पत्थर फेंक के मारा और मेरी चीख निकली मैं लड़खड़ा. वो वहीं गिर गया मैंने देखा कोई आदमी मेरे पास खड़ा था जिसने अपना बड़ा सा मुँह खोला हुआ था और उसकी लार मेरे चेहरे पर टपक रही थी इसके बाद मुझे कुछ भी याद नहीं.
घरवालों ने बताया कि वो जंगल ऐसा है जहाँ रात को काम करने की मनाही है जो. वहाँ कोई शैतान है जो हर वक्त किसी ना किसी शिकार की तलाश में वहाँ भटकता रहता है रात को वहाँ मज़दूर भी काम नहीं करते जितने भी लोग है सारे अंदर बैठे रहते है साँप सोते है साथ खाते पीते है एक रात कोई मज़दूर रात को phone पर बात करते करते बाहर. गया था बाकी लोगों ने जब उसे ढूंढा तो वही जंगल के अंदर उसके टुकड़े मिले थे बहुत बुरी हालत में थी उसकी लाश पहचाना तक नहीं चाह रहा था.
घरवालों की बातें मैं बड़े गौर से सुन रहा था मैंने उस आदमी को बहुत करीब से देखा था मैं सोच पा रहा था कि वो सुबह. उस मजदूर की हालत क्या की होगी उसने? वो आदमी इंसान नहीं था. या शायद इंसानी रूप में भेड़िया था वो.
मैं वहाँ काम करने वाले लोगों के बारे में सोचने लगा. कि कैसे काम करते होंगे? वो रात के वक्त ऐसी जगह पर बचपन में दादी. कभी बताया था कि जंगल के कुछ नियम होते हैं और उन्हीं में से एक नियम को शायद मैंने तोड़ दिया था उस दिन या शायद उस रात मैं रात के वक्त बेवजह जंगल के अंदर चला गया था.
उस दिन मैं बच तो गया पर इस बात को सोच के मौत को इतना. क़रीब से देखने के बाद मैं आज भी खौफ खा जाता हूँ मुझे पता नहीं क्या हुआ था पर मैं बच गया था उस दिन.
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